चाचा विजय और भतीजे रिंकू ने बताया कि एक बार दादा जी बाजार से गुड़ खरीद कर लाए थे, लेकिन उन्हें घर लौटते ही कीड़ा लगा हुआ दिखा। यह देखकर निराश दादा जी ने छोटे स्तर पर ही खेत में गन्ने की खेती करने का निर्णय लिया। इस काम को शुरू में उन्होंने 20 एकड़ जमीन पर आर्गेनिक विधि से किया, बाद में यह काम व्यापारिक रूप से बढ़ाया और आज 120 एकड़ जमीन पर गन्ना उगाया जा रहा है।
इस क्रांतिकारी प्रयास से न केवल उन्हें बहुमूल्य लाभ हो रहा है, बल्कि उनके गन्ने की रोपाई से लेकर गुड़ बनाने तक महिलाओं और स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है। इस व्यापार में आज 100 से अधिक लोग काम कर रहे हैं।
भतीजे रिंकू ने बताया कि उनके गुड़ की गुणवत्ता और स्वाद लोगों को खींचता है और इसलिए वे लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं। यहां पर वे चार प्रकार का गुड़, खांड और शक्कर तैयार करते हैं। इसके अलावा, उनके कलेसर पर गुड़ में ड्राई फ्रूट्स भी बनाए जा सकते हैं।
इस अनोखे प्रयास से वे पहले सालाना दो से तीन लाख रुपये की आमदनी से आज 8 करोड़ रुपये तक का टर्नओवर प्राप्त कर रहे हैं। उनकी यह कामयाबी और योगदान अन्य किसानों के लिए भी मिसाल है, जो परंपरागत खेती के विरोध में नकदी फसलों की खेती का रूझान बदलकर नये अवसरों की ओर बढ़ रहे हैं।