हरियाणा की महिलाओं को ‘आजीविका मिशन’ दिखा रहा नई राह, सहायता देकर बना रहा महिलाओं को स्वावलंबी

Priyanka Sharma

घर की चारदीवारी से निकल कर सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हुए आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होती हरियाणा की महिलाएं समाज में खुद को एक सफल उद्यमी के रूप में अलग पहचान दिला रही हैं। इन महिलाओं को मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के नेतृत्व में गठित राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन स्वावलंबन की नई राह दिखा रहा है।

गरीबी के आलम में गुजर बसर कर रही ऐसी ही एक महिला वंदना वर्ष 2018 से पहले एक आम ग्रहणी की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। परिवार के आर्थिक हालत भी कुछ अच्छे नहीं थे। तभी हरियाणा सरकार की राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ कर उन्होंने अपनी ही नहीं बल्कि अपने जैसी कई अन्य महिलाओं के जीवन में रोशनी लाने का काम किया है।

वंदना का कहना है कि अपने गांव से बाहर आकर दिल्ली जैसे बड़े शहर में खुद के बनाये खाने की स्टॉल लगाऊंगी, कभी सपने में भी नहीं सोच था।

प्रदेश में बनाये जा रहे स्वयं सहायता समूह( एसएचजी ) के माध्यम से उनकी ही नहीं पूरे परिवार की जिंदगी बदल गई है। वह गर्व से कहती है कि पहले परिवार में जो तंगी का हाल था, आज मेरा वही परिवार एक खुशहाल परिवार बन गया है।

एक ही स्थान पर मिनी भारत को समेटे हुए है ये फूड फेस्टिवल

वंदना ने सरस फूड फेस्टिवल में हरियाणा प्रदेश की ओर से स्टॉल लगाया है। यहां बन रहे हरियाणवी व्यंजन जैसे- बाजरे का चूरमा, बाजरे की खिचड़ी, मक्की की रोटी और मसाला लस्सी के दिल्लीवासी भी मुरीद हो रहे हैं।

देश के विभिन्न राज्यों के स्वादिष्ट व्यंजनों की महक राह चलते राहगीरों को भी इस सरस फूड फेस्टिवल का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित कर रही है। एक ही स्थान पर मिनी भारत को समेटे ये फूड फेस्टिवल भारत के पारम्परिक व विश्व प्रसिद्ध भोज्य पदार्थों को एक ही जगह चखने का मौका भी दे रहा है।

हरियाणा के स्टॉल नंबर 10 पर दूसरी बार आई डॉ कोंपल व उनके परिवार ने कहा कि हरियाणा स्टॉल के देसी व्यंजन सबसे स्वादिष्ट व कुछ अलग हट कर है।

दिल्ली के बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित हैंडीक्राफ्ट भवन में सरस फूड फेस्टिवल का आयोजन 1 से 17 दिसंबर के बीच किया जा रहा है। यह सरस फूड फेस्टिवल भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया है।

इस फेस्टिवल में 30 से ज्यादा स्टॉल है, जिनमें 21 राज्यों से आई 150 से ज्यादा स्वयं सहायता समूहों से जुडी महिलाएं महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण है, जो इस फूड फेस्टिवल में स्वादिष्ट पकवानों के अलावा लकड़ी से बने खिलौने, हैंडिक्राफ्ट, पीतल से बनी कलाकृतियाँ, ज्वैलरी, कश्मीरी शाल इत्यादि को भी प्रदर्शित कर रही है।

एसएचजी समूह साबित हो रहे मील का पत्थर

स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर महिलाएं चाहे तो बड़े से बड़े लक्ष्य को पार कर सकती हैं। हरियाणा सरकार द्वारा महिलाओं को स्वावलम्बन की दिशा में आगे बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत की मुहिम में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एसएचजी समूह मील का पत्थर साबित हो रही हैं । कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाली महिलाओं के सपनों को अब पंख मिल गये है।

यह कहना है वंदना का । वे आगे कहती हैं कि मेरे जैसी महिलाओं को अब अपने सपनो को साकार करने का मौका मिल गया है, जो शायद चार दीवारी में रह कर और बिना सहायता के नामुमकिन था। उनका यह सपना आज स्वयं सहायता समूह के माध्यम से पूरा हो सका है।

हर महीने घर खर्च पूरा करना भी बड़ी चुनौती थी

हरियाणा के पंचकूला जिला के पिंजौर ब्लॉक के गांव चिक्कन की रहने वाली वंदना गांव में कमजोर माली हालत में रहने को मजबूर थी। पति पेशे से ट्रक ड्राइवर है। घर में सास-ससुर के साथ साथ उनके दो बच्चे भी है। हर महीने किसी तरह घर खर्च पूरा करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। तभी वर्ष 2018 में एक दिन गांव में हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बनाये जा रहे स्वयं सहायता समूह से जुडी 3-4 महिलाये गांव में आई।

उन्होने ग्रामीण स्तर पर कई तरह के काम करने के सुझाव दिए। सुझाव के साथ काम का प्रशिक्षण व मशीन उपलब्ध करवाना भी इसमें शामिल था। इस मिशन के तहत 21 दिन का काम का प्रशिक्षण दिया गया।

जिस कार्य में मशीनों की जरुरत थी, तो सरकार की तरफ से मशीनें बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध करवाई गई। इसमें सिलाई से लेकर ब्यूटी पार्लर का कोर्स, अचार,पापड़, नमकीन, मुरब्बे आदि बनाने शामिल थे।

50 रूपए से हुई थी समूह से जुड़ने की शुरुआत
उन्होने बताया कि हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से शुरू में हमारे गांव से 10 महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाया गया, जिसमें प्रत्येक महिला को शुरुआत में 50 रुपये जमा करने थे। आगे चल कर ये राशि बढ़ा कर 100 रुपये कर दी गई।

हरियाणा ग्रामीण बैंक में सभी सदस्यों के खाते खुलवाए गये। इससे यह लाभ हुआ कि सरकार की ओर से 10 हजार रुपये का रिवॉल्विंग फंड जारी कर दिया गया।

वही ग्रुप के अच्छा काम करने पर बैंक ने एक लाख रुपये का लोन भी मंजूर कर दिया, जिसे बाद में 3 लाख रुपये से बढ़ा कर 6 लाख रुपये कर दिया गया है। शुरू में मुझे संदेह था कि ग्रुप से जुड़ना चाहिए या नहीं, लेकिन गांव में लोगों को मिलते लाभ को देखकर मैंने भी इस ग्रुप से जुड़ने व अपने सपनों को साकार करने की हिम्मत जुटाई।

इन समूहों से जुड़ कर ग्रामीण महिलाएं आज छोटे उद्यमी के रूप में कार्य कर रही हैं। कोई सिलाई सेंटर चला रही है, तो कोई अपनी दूध की डेयरी चला रही है। तो किसी का अपना ब्यूटी पार्लर है।

समूह को पंचकूला में अलॉट हुई कैंटीन,साथ ही देश के दूसरे राज्यों में लगने वाले मेलों में लगा रही है खुद की स्टॉल

वह बताती हैं कि समूह के साथ काम करते हुए समूह की ग्राम संगठन की बैठकों में मुझे खाना बनाने का जिम्मा सौपा गया। समूह के सभी सदस्यों को मेरा बनाया खाना बहुत पसंद आया। मेरे खाना बनाने के शौक को देखते हुए मुझे पंचकूला के विख्यात रेड बिशप होटल में शेफ द्वारा बेहतरीन खाना बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। वही सदस्यों की आपसी राय से मुझे 2022 में पंचकूला के डीसी ऑफिस में कैंटीन चलाने का ठेका मिल गया। बस उसके बाद जिंदगी का रुख ही बदल गया है।

जहाँ पहले घर में 10 हजार रुपये प्रति महीना इनकम थी, वह अब बढ़ कर 40 हजार रुपये से अधिक हो गई है।

पहले जरुरत की जिस चीज को नहीं खरीद सकते थे, सोचती थी कि ये चीज मेरे लेवल से परे है। उन सभी चीजों को आज मैं खरीदने की क्षमता रखती हूं। मेरे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। पैसा आने के साथ ही हिम्मत भी आ गई है।

सास बहु मिल कर संभालती है स्टॉल, महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दे रही सरकार

मेरे इस काम को शुरू करने के बाद मैने अपने व आस पास के गांवों में 4 से 5 समूह बनाए है। इन समूहों में 40 से 50 महिलाऐं शामिल हैं। समूह से जुड़ कर अब तक मैं कई प्रदेशों में अपने स्टॉल लगा चुकी हूँ। जहाँ कभी गांव से बाहर जाना संभव नहीं था।आज विभिन प्रदेशों में जा कर हरियाणा के खान पान से देश के लोगो को रूबरू करवा रही हूँ। अपना खुद का बिज़नेस कर रही हूँ।समाज में अपनी पहचान बना रही हूँ। वंदना की सास सत्या देवी, जिनकी उम्र लगभग 59 वर्ष है,अब अपनी बहु के साथ स्वयं सहायता समूह से जुड़ गई है।

इस काम में सत्या देवी भी उनका सहयोग करती हैं। उनकी सास का कहना है कि इस समूह से जुड़ कर घर की छोटी-छोटी जरुरते अब पूरी होने लगी है। समूह के सदस्य दुःख दर्द में एक दूसरे की सहायता करते है।

हमारा परिवार पहले हम तक ही सीमित था। अब समूह भी परिवार का हिस्सा बन गया है। पहले मेरा और मेरी बहु का रिश्ता मजबूत था। लेकिन अब ओर भी गहरा हो गया है। सत्या देवी कहती है कि आज हमे किसी का एहसान नहीं लेना पड़ता।

हरियाणा सरकार की इस योजना ने महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होने का हौसला दिया है। इसके लिए समूह की सभी महिलायें सरकार की बहुत आभारी है। यह कहते हुए उनकी आवाज़ में एक अलग आत्मविश्वास झलक रहा था।

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