Chanakya Niti : जीवन में शिक्षा व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण आभूषण है। ज्ञान रूपी धन के बिना व्यक्ति मूर्ख कहलाता है और उसे समाज में नीच दृष्टि से देखा जाता है। आचार्य चाणक्य ने भी अपनी नीतियों के माध्यम इस विषय को समझाने का कार्य किया है। उन्होंने चाणक्य नीति (Chanakya Niti Teaching) के माध्यम से अनगिनत युवाओं को सद्मार्ग लाने का और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने का कार्य किया है। आचार्य जी ने चाणक्य नीति में कुछ ऐसी बातें बताई हैं जिनको समझने से और उनका पालन करने से व्यक्ति किसी भी चुनौती को आसानी से सुलझा सकता है। इए जानते हैं आचार्य चाणक्य से जीवन का मूल मंत्र।
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः ।।
चाणक्य नीति के इस श्लोक में यह बताया गया है कि जिस स्थान पर नारी की पूजा कि जाती है वहां देवी-देवता स्वयं निवास करते हैं। वहीं जहां नारी की पूजा नहीं होती है या उन्हें हीन भावना से देखा जाता है वहां सदैव किसी न किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न होती रहती है और वहां सभी कार्य व्यर्थ हो जाते हैं। इसलिए समाज में नारी का स्थान देवी-देवताओं के स्थान के बराबर है। उनकी निंदा या उनका अपमान करने से स्वयं देवी-देवता क्रोधित हो जाते हैं।
मूर्खा यत्र न पूज्यते धान्यं यत्र सुसंचितम् ।
दंपत्यो कलहं नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागतः ।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य बता रहे हैं कि जिस स्थान पर मुर्ख अर्थात अज्ञानी व्यक्ति को नहीं सम्मान दिया जाता है, जहां अनाज का सम्मान किया जाता है। जिस स्थान पर पति-पत्नी में सदा प्रेम बना रहता है, वहां माता लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में मुर्ख व्यक्ति को अपना आदर्श बनाना मुर्खता से भी बड़ा पाप है साथ ही अनाज यानि अन्न का हमेशा सम्मान करना ही व्यक्ति का सबसे बड़ा कर्तव्य है।
भूमे: गरीयसी माता, स्वर्गात उच्चतर: पिता ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी ।।
इस नीति में आचार्य चाणक्य ने जीवन के सबसे ज्ञान को सम्मिलित किया है। उन्होंने बताया है कि मातृभूमि से श्रेष्ठ माता का स्थान है। पिता का स्थान स्वर्ग से भी ऊंचा है। वहीं माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं। इसलिए व्यक्ति को अंतिम स्वांस तक माता-पिता का सम्मान करना चाहिए और सदैव अपनी मातृभूमि के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।